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Category: PM Modi Sarkari Yojana

Mukhyamantri Balika Free Scooty Yojana 2024

Mukhyamantri Balika Free Scooty Yojana 2024| मुख्यमंत्री बालिका स्कूटी योजना के अंतर्गत 12वीं पास छात्राओं को मिलेगी फ्री स्कूटी

मध्य प्रदेश सरकार के द्वारा राज्य में Mukhyamantri Balika Free Scooty Yojana 2024 शुरू की गई है जिसके अंतर्गत छात्राएं 12वीं प्रथम श्रेणी से पास करती है तो उन्हें सरकार के द्वारा बिल्कुल मुफ्त में स्कूटी दी जाएगी योजना को शुरू करने का प्रमुख मकसद राज्य में बालिका शिक्षा को

Maharashtra Pink E-Rickshaw Yojana 2024

Maharashtra Pink E-Rickshaw Yojana 2024| महिलाओं को पिंक ई-रिक्शा खरीदने पर मिल रही 20% सब्सिडी और 70% लोन की सुविधा

महाराष्ट्र सरकार के द्वारा Maharashtra Pink E-Rickshaw Yojana 2024 शुरू किया गया है जिसके अंतर्गत महिलाओं को ई रिक्शा खरीदने पर 20 % सब्सिडी और 70%  लोन दिया जाएगा ताकि महिला ई रिक्शा खरीद कर  अपने लिए कमाई के जरिए बना सकते हैं। शुरुआत में इस योजना को केवल 10 शहरों

Udyogini Yojana Scheme 2024

Udyogini Yojana Scheme 2024 | उद्योगिनी योजना स्कीम के तहत मिलेगा बिजनेस शुरू करने के लिए 3 लाख तक का ब्याज मुक्त लोन

केंद्र सरकार के द्वारा Udyogini Yojana Scheme 2024 शुरू की गई है जिसके आर्थिक रूप से कमजोर शब्द की महिलाएं जिनकी वार्षिक आय 1.5 लाख से कम है उनका बिजनेस शुरू करने के लिए सरकार यहां पर ₹300000 तक का लोन ब्याज मुक्त प्रदान करेगी ताकि महिलाएं खुद का बिजनेस

MP Akansha Yojana 2024 - examlover.com

MP Akansha Yojana 2024 | एमपी आकांक्षा योजना 2024 के द्वारा अब सभी छात्र ले सकेंगे JEE, NEET, AIMS की फ्री कोचिंग

मध्य प्रदेश सरकार के द्वारा MP Akansha Yojana 2024 का शुभारंभ किया गया है जिसके तहत राज्य के छात्रों को JEE, NEET, AIMS की कोचिंग बिल्कुल मुफ्त में उपलब्ध करवाई जाएगी ताकि वह एग्जाम को पास कर सके। लेकिन यह योजना मध्य प्रदेश के केवल अनुसूचित जनजाति वर्ग के लिए

Mukhyamantri Pashudhan Vikas Yojana Jharkhand 2024: दुधारू पशुओं की खरीद पर 75% से 90% तक की सब्सिडी, जानें कैसे यहां से

Pashudhan Vikas Yojana:- देश में किसानों की आय को बढ़ाने के लिए केंद्रीय और राज्य सरकारों ने कई योजनाएं शुरू की हैं। यहीं मुख्यमंत्री पशुधन विकास योजना का उद्घाटन किया गया है, जिसका लक्ष्य किसानों को पशुपालन के साथ-साथ खेती करने के लिए भी प्रेरित करना है। झारखंड सरकार ने

Pradhan Mantri Suryoday Yojana 2024|प्रधानमंत्री सूर्योदय योजना के तहत 1 करोड़ लोगों के घरों में लगेगा सोलर पैनल

Pradhan Mantri Suryoday Yojana 2024:- 22 जनवरी 2024 को अयोध्या में श्री राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम से लौटने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने प्रधानमंत्री सूर्योदय योजना की घोषणा की। इस योजना से बढ़ते बिजली बिलों की समस्या से एक करोड़ से अधिक लोग बच सकेंगे। प्रधानमंत्री सूर्योदय योजना

Mukhyamantri Mahila Samman Yojana 2024 Online Apply |दिल्ली की सभी महिलाओं को सीधे बैंक खाते में हर महीने 1,000 रुपये

Mukhyamantri Mahila Samman Yojana 2024 Online Apply दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली में रहने वाली महिलाओं के लिए मुख्यमंत्री महिला सम्मान योजना की शुरुआत की है। इस योजना की घोषणा दिल्ली की वित्त मंत्री ने 4 मार्च 2024 को वित्त वर्ष 2024-25 का बजट पेश करते समय की।

Rajashtan Ki Sanskriti एक अद्वितीय और समृद्ध धरोहर है, जो राज्य की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि और सांस्कृतिक विविधता को प्रतिबिंबित करती है। यह राज्य अपनी भव्यता, रंगीन परंपराओं, और अद्वितीय रीति-रिवाजों के लिए प्रसिद्ध है। राजस्थान की संस्कृति का महत्व उसकी पारंपरिक लोक कलाओं, संगीत, नृत्य, और स्थापत्य कला में निहित है, जो इसे भारत के अन्य राज्यों से अलग करता है। राजस्थान का इतिहास हजारों साल पुराना है, जिसमें विभिन्न राजाओं, महाराजाओं, और शासकों का योगदान रहा है। इन शासकों ने अपनी अनूठी सांस्कृतिक धरोहर को संजोया और संरक्षित किया। राजस्थान की संस्कृति में राजपूताना वीरता, मेवाड़ की गौरवगाथा, और मरुभूमि के अद्वितीय जीवन शैली की झलक मिलती है। राजस्थान की संस्कृति की विविधता उसकी विभिन्न जातियों, जनजातियों, और समुदायों में निहित है। प्रत्येक समुदाय की अपनी विशिष्ट परंपराएं, त्यौहार, और रिवाज होते हैं, जो राज्य की समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर को और भी रंगीन बनाते हैं। राजस्थान की लोक कला, जैसे कि कठपुतली नृत्य, घूमर नृत्य, और कालबेलिया नृत्य, राज्य की सांस्कृतिक पहचान का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। राजस्थान की संस्कृति का महत्व इस बात में भी है कि यह राज्य की आर्थिक और सामाजिक जीवन का अभिन्न अंग है। यहां के मेले, त्यौहार, और धार्मिक आयोजन न केवल पारंपरिक धरोहर को जीवित रखते हैं, बल्कि राज्य की अर्थव्यवस्था में भी महत्वपूर्ण योगदान देते हैं। राजस्थान की संस्कृति के माध्यम से ही राज्य की पहचान और समाज की एकता को बनाए रखा जा सकता है। राजस्थानी लोक संगीत और नृत्य राजस्थान की संस्कृति का एक महत्वपूर्ण अंग है यहाँ का समृद्ध लोक संगीत और नृत्य। राजस्थान के लोक संगीत और नृत्य अपनी विशिष्टता और विविधता के लिए विश्व प्रसिद्ध हैं। लोक संगीत में गाए जाने वाले गीत मुख्यतः जीवन के विभिन्न पहलुओं, त्योहारों, ऋतुओं और परंपराओं को दर्शाते हैं। इनमें से कुछ प्रसिद्ध गीत हैं 'पधारो म्हारे देश' और 'गोरबंद'। राजस्थानी लोक संगीत में विभिन्न प्रकार के वाद्ययंत्रों का प्रयोग होता है, जिनमें से प्रमुख हैं सारंगी, कमायचा, मोरचंग, और खड़ताल। इन वाद्ययंत्रों के मधुर स्वरों के साथ गाए जाने वाले गीतों में एक अलग ही आकर्षण होता है। लोक संगीत की धुनें और लय राजस्थान की विशिष्ट सांस्कृतिक धरोहर को जीवंत करती हैं। राजस्थान के लोक नृत्यों की बात करें तो यहाँ की नृत्य शैलियाँ भी अत्यधिक आकर्षक और जीवंत होती हैं। घूमर नृत्य, जिसे महिलाएं विशेष अवसरों पर करती हैं, अपनी नृत्य मुद्राओं और रंग-बिरंगे परिधानों के लिए मशहूर है। कालबेलिया नृत्य, जो कालबेलिया जनजाति के लोग प्रस्तुत करते हैं, अपने तेज़ और लचीले आंदोलनों के लिए जाना जाता है। चरी नृत्य और भवाई नृत्य भी राजस्थान की संस्कृति का अभिन्न हिस्सा हैं। राजस्थानी नृत्य और संगीत में न केवल मनोरंजन का तत्व होता है, बल्कि यह यहाँ की समाजिक और सांस्कृतिक ताने-बाने को भी दर्शाते हैं। यह नृत्य और संगीत राजस्थान की परंपराओं और मान्यताओं को भी जीवंत रूप में प्रस्तुत करते हैं। राजस्थानी भोजन राजस्थान की संस्कृति में भोजन का एक विशेष स्थान है, जो इस प्रदेश की विविधता और समृद्धि को दर्शाता है। राजस्थानी भोजन में पारंपरिक व्यंजन जैसे दाल-बाटी-चूरमा, गट्टे की सब्जी, केर-सांगरी, और लाल मांस प्रमुखता से शामिल हैं। दाल-बाटी-चूरमा राजस्थान का एक प्रमुख और लोकप्रिय भोजन है, जिसमें मसूर दाल, गेहूं की बाटी और मीठे चूरमे का मिश्रण होता है। यह व्यंजन न केवल स्वाद में अद्वितीय है, बल्कि पोषण से भरपूर भी है। गट्टे की सब्जी राजस्थान का एक और महत्वपूर्ण व्यंजन है, जिसमें बेसन के गट्टों को मसालेदार ग्रेवी में पकाया जाता है। यह व्यंजन अपनी खास बनावट और स्वाद के लिए जाना जाता है। केर-सांगरी, जो राजस्थान के मरुस्थलीय क्षेत्रों में पाई जाने वाली विशेष सब्जियों से तैयार की जाती है, एक अन्य अनूठा व्यंजन है। केर और सांगरी को सूखा कर मसालों के साथ पकाया जाता है, जिससे इसका स्वाद अत्यंत स्वादिष्ट और पौष्टिक बन जाता है। लाल मांस, जो मुख्यतः मटन से बनाया जाता है, राजस्थान का एक प्रसिद्ध मांसाहारी व्यंजन है। इसे लाल मिर्च और अन्य मसालों के साथ धीमी आंच पर पकाया जाता है, जिससे इसका स्वाद और रंग विशेष रूप से आकर्षक हो जाता है। इस व्यंजन की स्वादिष्टता और अनूठापन इसे राजस्थान की संस्कृति का एक अभिन्न हिस्सा बनाते हैं। राजस्थानी भोजन में मिठाइयों का भी एक महत्वपूर्ण स्थान है। घेवर, जो मुख्यतः तीज और रक्षाबंधन जैसे त्योहारों पर तैयार किया जाता है, अपनी खास बनावट और स्वाद के लिए प्रसिद्ध है। मोटी पाक, एक और राजस्थानी मिठाई, बेसन, घी और शक्कर से बनाया जाता है, जो अपने अद्वितीय स्वाद के लिए जाना जाता है। रबड़ी, जो दूध को गाढ़ा कर के तैयार की जाती है, राजस्थान की मिठाइयों में एक विशेष स्थान रखती है। राजस्थानी पहनावा राजस्थान की संस्कृति में पहनावा एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है। यह न केवल राज्य की परंपराओं को दर्शाता है बल्कि उसकी विविधता और रंग-बिरंगी शैली को भी उजागर करता है। राजस्थानी पहनावे में पुरुषों और महिलाओं दोनों के लिए विशेष परिधान शामिल होते हैं। महिलाओं के पारंपरिक परिधानों में सबसे प्रमुख है घाघरा-चोली। घाघरा एक लंबी, चौड़ी स्कर्ट होती है जिसे चोली या ब्लाउज़ के साथ पहना जाता है। चोली को कढ़ाई और मिरर वर्क से सजाया जाता है, जिससे उसकी सुंदरता और बढ़ जाती है। इसके साथ ही ओढ़नी, जो एक लंबा दुपट्टा होता है, सिर और कंधों को ढकने के लिए उपयोग में लाया जाता है। ओढ़नी को भी रंग-बिरंगे धागों और मिरर वर्क से सजाया जाता है। पुरुषों का पारंपरिक परिधान कुर्ता-पजामा होता है। कुर्ता एक लंबी शर्ट होती है जिसे पजामे के साथ पहना जाता है। इसके साथ ही, पुरुष पगड़ी पहनते हैं जो उनकी परंपरा और सामाजिक स्थिति का प्रतीक होती है। पगड़ी को विभिन्न प्रकार के रंगों और डिज़ाइनों में बांधा जाता है, और यह राजस्थानी पुरुषों के पहनावे का अभिन्न हिस्सा है। राजस्थानी आभूषण भी अपने आप में विशिष्ट होते हैं। महिलाओं द्वारा पहने जाने वाले आभूषणों में कंगन, हार, झुमके, बिछुए और नथ प्रमुख होते हैं। ये आभूषण न केवल सौंदर्य को बढ़ाते हैं बल्कि सांस्कृतिक धरोहर का भी प्रतीक होते हैं। पुरुष भी विभिन्न प्रकार के आभूषण पहनते हैं, जैसे कि कड़ा और अंगूठी, जो उनके पहनावे को पूर्णता प्रदान करते हैं। इस प्रकार, राजस्थानी पहनावा न केवल राज्य की सांस्कृतिक धरोहर को संजोए हुए है, बल्कि उसकी विशिष्ट और आकर्षक पहचान को भी बनाए रखता है। राजस्थानी हाट और मेले राजस्थान की संस्कृति में हाट और मेलों का एक विशेष स्थान है। ये न केवल सांस्कृतिक आदान-प्रदान के महत्वपूर्ण केंद्र हैं, बल्कि आर्थिक दृष्टिकोण से भी अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। प्रमुख मेलों में पुष्कर मेला, नागौर मेला, और ऊंट मेला शामिल हैं, जो विभिन्न प्रकार की सांस्कृतिक गतिविधियों के लिए प्रसिद्ध हैं। पुष्कर मेला राजस्थान के सबसे बड़े और प्रतिष्ठित मेलों में से एक है। यह मेला कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर आयोजित किया जाता है और इसका मुख्य आकर्षण पुष्कर झील के किनारे स्थित ब्रह्मा मंदिर है। इस मेले में देश-विदेश से श्रद्धालु और पर्यटक बड़ी संख्या में आते हैं। यहां पर विभिन्न धार्मिक अनुष्ठान, सांस्कृतिक प्रदर्शन और व्यापारिक गतिविधियाँ होती हैं, जो राजस्थान की संस्कृति का जीवंत उदाहरण प्रस्तुत करती हैं। नागौर मेला भी राजस्थान के प्रमुख मेलों में से एक है। यह मेला नागौर में आयोजित किया जाता है और इसका मुख्य आकर्षण पशु व्यापार है। यहां पर बैल, ऊँट, घोड़े और अन्य पशुओं की बिक्री होती है। इसके अलावा, मेले में विभिन्न प्रकार के सांस्कृतिक कार्यक्रम और प्रतियोगिताएं आयोजित की जाती हैं, जो स्थानीय संस्कृति को दर्शाते हैं। ऊंट मेला, विशेषकर बीकानेर में आयोजित होता है, और राजस्थान की संस्कृति का एक और महत्वपूर्ण पहलू है। इस मेले में ऊंटों की सजावट, ऊंट दौड़ और ऊंट नृत्य जैसे कार्यक्रम होते हैं। यह मेला न केवल राजस्थानी संस्कृति का प्रतीक है, बल्कि इसके माध्यम से स्थानीय आर्थिक गतिविधियों को भी प्रोत्साहन मिलता है। इन मेलों के माध्यम से राजस्थान की संस्कृति के विविध पहलुओं का दर्शन होता है। ये हाट और मेले न केवल सांस्कृतिक धरोहर को संजोते हैं, बल्कि स्थानीय व्यापार और कारीगरों को भी एक महत्वपूर्ण मंच प्रदान करते हैं। राजस्थानी कला और शिल्प राजस्थान की संस्कृति, जिसे "राजस्थान की संस्कृति" के रूप में भी जाना जाता है, कला और शिल्प के विविध रूपों से भरी हुई है। इन कलाओं में से एक प्रमुख शिल्प है ब्लू पॉटरी। जयपुर की ब्लू पॉटरी अपनी विशिष्ट नीली रंगत और सुंदर डिजाइनों के लिए प्रसिद्ध है। इसका इतिहास मुग़ल काल से जुड़ा है, जब इसे राजस्थान में लाया गया था। इस कला के अंतर्गत मिट्टी के बर्तन और टाइल्स पर नीली रंग की ग्लेज़िंग की जाती है, जो इसे अनोखा और आकर्षक बनाती है। बंधेज, या बांधी गई कपड़ों की कला, राजस्थान की एक और महत्वपूर्ण शिल्प है। इसे टाई-एंड-डाई तकनीक के रूप में भी जाना जाता है। इस प्रक्रिया में कपड़े को विशिष्ट तरीके से बांधकर रंगा जाता है, जिससे अनोखे और रंग-बिरंगे डिज़ाइन उत्पन्न होते हैं। बंधेज की साड़ियाँ, दुपट्टे और चुनरी राजस्थान की संस्कृति की पहचान हैं और विभिन्न त्योहारों और समारोहों में पहनी जाती हैं। फड़ पेंटिंग राजस्थान की एक प्राचीन चित्रकला शैली है, जो धार्मिक और पौराणिक कथाओं को चित्रित करती है। यह कला मुख्य रूप से फड़ नामक लंबे कपड़े पर बनाई जाती है। फड़ पेंटिंग में लोक देवताओं और महापुरुषों की कहानियों को चित्रित किया जाता है, और यह कला राजस्थान के भीलवाड़ा जिले में विशेष रूप से लोकप्रिय है। कठपुतली कला, जिसे पपेट्री के रूप में भी जाना जाता है, राजस्थान की एक और महत्वपूर्ण सांस्कृतिक धरोहर है। कठपुतलियाँ हाथ से बनाई जाती हैं और इनका उपयोग विभिन्न लोक कथाओं और ऐतिहासिक घटनाओं को प्रस्तुत करने के लिए किया जाता है। इस कला का महत्व न सिर्फ मनोरंजन में है, बल्कि यह राजस्थान की सांस्कृतिक परंपराओं और सामाजिक मुद्दों को भी उजागर करती है। राजस्थान की कला और शिल्प की विविधता में इन शिल्पों का विशेष स्थान है, जो न केवल ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व रखते हैं, बल्कि राजस्थान की समृद्ध धरोहर का भी प्रतीक हैं। इन कलाओं के माध्यम से राजस्थान की संस्कृति को और गहराई से समझा जा सकता है। राजस्थानी भाषा और साहित्य राजस्थान की संस्कृति में राजस्थानी भाषा और साहित्य का विशेष स्थान है। राजस्थानी भाषा की विविधता और उसकी उपभाषाओं का समृद्ध इतिहास इसे और भी महत्वपूर्ण बनाता है। राजस्थानी भाषा खुद में अनेक उपभाषाओं को समाहित करती है, जैसे मारवाड़ी, डिंगल, मेवाड़ी, शेखावटी, और हाड़ौती। ये उपभाषाएं स्थानीय बोलियों और भौगोलिक विविधताओं के अनुसार विकसित हुई हैं, जो राजस्थान की सांस्कृतिक धरोहर को और भी समृद्ध बनाती हैं। राजस्थानी साहित्य में भी बहुमूल्य योगदान रहा है। यह साहित्य प्राचीन काल से लेकर आधुनिक युग तक की रचनाओं का संगम है। प्राचीन समय में, डिंगल काव्य का प्रमुख स्थान था, जिसमें वीर रस और शृंगार रस की कविताएं प्रमुख थीं। डिंगल के प्रमुख कवियों में पृथ्वीराज रासो के चंद बरदाई, दुर्गादास राठौड़ और पृथ्वीराज चौहान का नाम उल्लेखनीय है। इन कवियों ने अपने रचनाओं में वीरता, प्रेम, और समाज की विविधताओं का चित्रण किया है। आधुनिक राजस्थानी साहित्य में प्रसिद्ध साहित्यकारों में विजयदान देथा, कानसिंह राठौड़, और कन्हैयालाल सेठिया का नाम प्रमुख है। विजयदान देथा की कहानियों में ग्रामीण जीवन की सजीव चित्रण मिलता है और उनकी कहानियों ने पूरे देश में पहचान बनाई है। कन्हैयालाल सेठिया की कविताएं समाजिक और सांस्कृतिक मुद्दों पर आधारित हैं, जो आज भी प्रासंगिक हैं। राजस्थानी साहित्य और भाषा की इस समृद्ध धरोहर को संरक्षित रखने के लिए विभिन्न साहित्यिक संस्थाएं और अकादमियां कार्यरत हैं। साहित्यिक समारोहों और पुस्तक मेलों के माध्यम से राजस्थानी साहित्य को प्रोत्साहित किया जा रहा है। राजस्थान की संस्कृति में यह भाषा और साहित्य एक महत्वपूर्ण अंग हैं, जो इसकी पहचान को और भी गहराई और विविधता प्रदान करते हैं। राजस्थानी वास्तुकला राजस्थान की संस्कृति का एक महत्वपूर्ण पहलू उसकी वास्तुकला है, जो अपनी अनूठी शैली और ऐतिहासिक महत्व के लिए प्रसिद्ध है। राजस्थान की वास्तुकला में किलों, महलों, हवेलियों और मंदिरों का एक विशेष स्थान है। इन संरचनाओं ने न केवल राज्य के इतिहास को संरक्षित किया है, बल्कि इसे विश्व धरोहर स्थलों की सूची में भी शामिल कराया है। जयपुर, जिसे 'गुलाबी नगरी' के नाम से भी जाना जाता है, अपनी सुंदर और योजनाबद्ध वास्तुकला के लिए प्रसिद्ध है। यहाँ का सिटी पैलेस, हवा महल और जंतर मंतर अपनी अद्वितीयता और भव्यता के लिए विश्व विख्यात हैं। सिटी पैलेस का निर्माण राजपूत और मुगल शैली के मिश्रण से किया गया है, जो इसे विशेष बनाता है। हवा महल, अपनी अनगिनत छोटी-छोटी खिड़कियों के कारण, रानी और उनकी सखियों के लिए एक अद्वितीय स्थल रहा है। जोधपुर का मेहरानगढ़ किला एक और उत्कृष्ट उदाहरण है राजस्थानी वास्तुकला का। यह किला 400 फीट ऊंची पहाड़ी पर स्थित है और इसकी दीवारें 36 मीटर ऊँची और 21 मीटर चौड़ी हैं। इसके भीतर मौजूद मोती महल, फूल महल और शीश महल जैसी संरचनाएँ इस किले की भव्यता को और भी बढ़ाती हैं। उदयपुर, जिसे झीलों की नगरी के नाम से जाना जाता है, अपनी जलमहलों और हवेलियों के लिए प्रसिद्ध है। यहाँ का सिटी पैलेस, जो पिछोला झील के किनारे स्थित है, एक प्रमुख आकर्षण है। इस महल का निर्माण 16वीं शताब्दी में शुरू हुआ और इसे कई राजाओं ने मिलकर पूरा किया। इस महल की बनावट और सजावट राजस्थान की संस्कृति का प्रतीक है। जैसलमेर, जो अपने सुनहरे किले के लिए प्रसिद्ध है, को 'स्वर्ण नगरी' भी कहा जाता है। जैसलमेर का किला पूरी तरह से पीले बलुआ पत्थरों से बना है और इसे 'सोनार किला' के नाम से भी जाना जाता है। इस किले के भीतर बसे हवेलियां, जैसे पटवों की हवेली और नथमल की हवेली, राजस्थानी स्थापत्य शैली के उत्कृष्ट उदाहरण हैं। राजस्थान की वास्तुकला न केवल स्थानीय संस्कृति और इतिहास को दर्शाती है, बल्कि हर संरचना में छिपी कहानियों को भी जीवंत करती है। यह वास्तुकला राज्य की समृद्ध संस्कृति और कला का प्रतीक है, जो पर्यटकों और इतिहासकारों को सदियों से आकर्षित करती आ रही है।

राजस्थान की संस्कृति : जानें राजस्थान की समृद्ध संस्कृति, भव्य परंपराएं और ऐतिहासिक धरोहरें जो इसे भारत का अद्वितीय राज्य बनाती हैं।

Rajashtan Ki Sanskriti एक अद्वितीय और समृद्ध धरोहर है, जो राज्य की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि और सांस्कृतिक विविधता को प्रतिबिंबित करती है। यह राज्य अपनी भव्यता, रंगीन परंपराओं, और अद्वितीय रीति-रिवाजों के लिए प्रसिद्ध है। राजस्थान की संस्कृति का महत्व उसकी पारंपरिक लोक कलाओं, संगीत, नृत्य, और स्थापत्य कला में निहित

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वैसे तो भारत में सरकार द्वारा कई तरह की सरकारी योजनाएं शुरू की गई हैं। लेकिन सरकारी योजनाएं शुरू करने के बाद भी बेरोजगारी कम नहीं हो रही है. भारत में बेरोजगारी बढ़ती जा रही है. इसलिए अब भारत सरकार मुख्य रूप से बेरोजगारी को कम करने के लिए विभिन्न

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